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रात जैसे स्वप्न देखते हैं और सुबह जाग कर कहते हैं, स्वप्न घटा और अछूते रह जाते हैं। स्वप्न में हो सकता है चोरी की हो, और स्वप्न में यह भी हो सकता है कि जेलखाने में चले गए हों; स्वप्न में यह भी हो सकता है रिश्वत देकर बच गए हों, जेलखाने न गए हों। स्वप्न में कुछ भी हो सकता है। लेकिन सुबह जब जागते हैं, तो स्वप्न ऐसे ही तिरोहित हो जाता है, जैसे हुआ ही न हो। सुबह उठ कर अपने को चोर अनुभव नहीं करते।
लेकिन क्या कभी खयाल किया, स्वयंके बिना स्वप्न हो सकता था क्या? स्वयं थे तो ही स्वप्न हो सका। न होते तो मुर्दे को, लाश को सपना नहीं आता,थे तो स्वप्न घटा; मौजूदगी जरूरी थी।
फिर भी सुबह उठ कर ऐसा अनुभव नहीं करते कि अब क्या करें? रात चोरी कर ली! व्रत करें? उपवास करें? कोई दान, त्याग करें? क्या करें? कुछ भी अनुभव नहीं करते। जागने के बाद दो मिनट से ज्यादा स्वप्न याद भी नहीं रहता, खो जाता है धुएं की रेखा की तरह।
ठीक समाधि की स्थिति में पूरा जीवन स्वप्नवत मालूम होता है। जो—जो जीया—एक जीवन नहीं, अनंत जीवन में जो—जो जीया—समाधि की अवस्था में पहुंचते ही जैसे सुबह नींद से जागने में पहुंचते हैं, ऐसे ही इस तथाकथित जागने से जब समाधि में पहुंचते हैं, तब पीछे का सारा का सारा वर्तुल, सब धुआं, स्वप्न हो जाता है।
About Life Partner Preferences:
*Positive Thinking*
एक महिला की आदत थी, कि वह हर रोज सोने से पहले, अपनी दिन भर की खुशियों को एक काग़ज़ पर, लिख लिया करती थीं.... एक रात उन्होंने लिखा :
*मैं खुश हूं,* कि मेरा पति पूरी रात, ज़ोरदार खर्राटे लेता है. क्योंकि वह ज़िंदा है, और मेरे पास है. ये ईश्वर का, शुक्र है..
*मैं खुश हूं,* कि मेरा बेटा सुबह सबेरे इस बात पर झगड़ा करता है, कि रात भर मच्छर - खटमल सोने नहीं देते. यानी वह रात घर पर गुज़रता है, आवारागर्दी नहीं करता. ईश्वर का शुक्र है..
*मैं खुश हूं,* कि, हर महीना बिजली, गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का, अच्छा खासा टैक्स देना पड़ता है. यानी ये सब चीजें मेरे पास, मेरे इस्तेमाल में हैं. अगर यह ना होती, तो ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती ? ईश्वर का शुक्र है..
*मैं खुश हूं,* कि दिन ख़त्म होने तक, मेरा थकान से बुरा हाल हो जाता है. यानी मेरे अंदर दिन भर सख़्त काम करने की ताक़त और हिम्मत, सिर्फ ईश्वर की मेहर से है..
*मैं खुश हूं,* कि हर रोज अपने घर का झाड़ू पोछा करना पड़ता है, और दरवाज़े -खिड़कियों को साफ करना पड़ता है. शुक्र है, मेरे पास घर तो है. जिनके पास छत नहीं, उनका क्या हाल होता होगा ? ईश्वर का, शुक्र है..
*मैं खुश हूं,* कि कभी कभार, थोड़ी बीमार हो जाती हूँ. यानी मैं ज़्यादातर सेहतमंद ही रहती हूं. ईश्वर का, शुक्र है..
*मैं खुश हूं,* कि हर साल त्यौहारो पर तोहफ़े देने में, पर्स ख़ाली हो जाता है. यानी मेरे पास चाहने वाले, मेरे अज़ीज़, रिश्तेदार, दोस्त, अपने हैं, जिन्हें *तोहफ़ा दे सकूं. अगर ये ना हों, तो ज़िन्दगी कितनी बेरौनक* हो..? ईश्वर का, शुक्र है..
*मैं खुश हूं,* कि हर रोज अलार्म की आवाज़ पर, उठ जाती हूँ. यानी मुझे हर रोज़, एक नई सुबह देखना नसीब होती है. ये भी, ईश्वर का